गुरु का गोचर फल भाव 1 से 6 - Hindi astrology

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गुरु का गोचर फल भाव 1  से  6- astrology in hindi

प्रथम भाव : गोचरवश गुरु जब जन्म राशि से प्रथम अर्थात जन्म राशि पर भ्रमण करता हे तो धन का व्यय होता हे , स्थान परिवर्तन होता हे ,और भय और मान - हानि होती हे ,रोजगार और व्यवसाय में विध्न बाधाए आती हे ,राज्य भय और मानसिक व्यथा रहती हे ,कार्य विलम्ब से होते हे ,कार्यो में रूकावट पड़ती हे ,यात्रा में कष्ट होता हे ,और सुख में कमी आती हे , कई कठिनाईओ का सामना करना पड़ता हे घर से बहार रहना पड़ता हे , किसी तरह का कोई सुझाव काम नहीं आता और समय पर बुद्धि भी काम नहीं देती , परीक्षा में निराशा मिलती हे अधिक व्यय के कारण व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जाती हे . ( astrology in hindi )

द्वितीय भाव : गोचरवश जब गुरु द्वितीय भाव में भ्रमण करता हे तो धन प्राप्त होता हे , कुटुंब की सुख समृद्धि बढ़ती हे , व्यक्ति की ख्याति बढ़ती हे और परोपकार के कार्यो में रूचि बढ़ती हे , चल सम्पति बढ़ती हे ,और आर्थिक स्थिति अच्छी रहती हे , शत्रुओ बलहीन रहते हे और शत्रुओ का नाश होता हे ,कुटुंब की सुख समृद्धि होती हे और वृद्धि होती हे , विवाह अथवा पुत्र जन्म का सुख होता हे , कुवारो , कुवारिओ ,के लिए विवाह प्रस्ताव आते हे , मौज मेला का समय रहता हे.शनि साढ़ेसाती के उपाय


तृतीया भाव : गुरु गोचरवश जब जन्म राशि से तृतीय भाव में आता  हे तो कार्यो में विध्न पड़ते हे , रोजगार में परेशानी पैदा होती हे और यहाँ तक की नौकरी छूट जाने की सम्भवना बनी रहती हे , राज्य कर्मचारीओ की और से विरोध होता हे , धन और मान की हानि होती हे , यात्रा में परेशानी ,दुख होता हे और यात्रा लाभकारी नहीं होती , कुटुंब में झग़डा होता हे और अपने इष्ट जनो से वियोग होता हे , शारीरिक पीड़ा होती हे और रोग का भय रहता हे , मित्रो का अनिष्ट होता हे.


चतुर्थ भाव : गोचर का गुरु जब चतुर्थ भाव संचार करता हे तो धन और कान्ति की हानि होती हे , राज्य की और से  प्रकार से भय रहता हे .
 जमीन जायदाद  तथा परिवार के सदस्यों का सुख नहीं मिलता , व्यक्ति को जन्म स्थान छोड़कर बाहर जाना पड़ता हे ,शत्रु वृद्धि  के कारण कष्ट होता हे , मन में अशांति रहती हे ,और घरेलु परेशानी लगी रहती हे ,अपनों द्वारा हानि जेलनि पड़ती हे ,स्वास्थय पक्ष क्षीण रहता हे , स्कूटर , कर एवं अन्य वाहन , आदि पर खर्चा भी होता हे . ( Hindi astrology )


पंचम भाव : जब गुरु गोचरवश , पंचम भाव में आता हे तब सुख और आनंद साथ लाता हे ,सुख और आनंद में वृद्धि होती हे , संतान का सुख मिलता हे ,पुत्र प्राप्त होता हे ,घर में मांगलिक उत्सव होते हे , सद्गुणों में वृद्धि होती हे , तर्क शक्ति ,सूझ बुझ में वृद्धि होती हे ,प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती हे ,पद की प्राप्ति होती हे ,कोई स्थिर लाभ होता हे ,व्यसाय में उन्नति होती हे , लॉटरी , सट्टे आदि भविष्य के व्यापार में लाभ रहता हे , नौकरो से सुख मिलता हे , सुख और समृद्धि होती हे , प्रेमिका और पत्नी का प्यार मिलता हे. सज्जनो में समागम होता हे.


षष्ठ भाव : बृहस्पति जब गोचरवश षष्ट भाव में संचार करता हे तो दुःख और रोग उत्पन्न करता हे , पुत्रो आदि में वैमनस्य रहता हे और धन की कमी महसूस होती हे , राज कर्मचारियों से विरोध की सम्भावना बानी रहती हे , अपने चचेरे भाई तथा शत्रुओ से पीड़ा होती हे , दौड़-धुप लगी रहती हे , फिर भी असफलता मिलती हे , मानसिक परेशानी रहती हे ,पेट , गैस तथा पेट के रोगो में वृद्धि होती हे . ( Hindi astrology ) 
 
  एस्ट्रोलोजी इन हिन्दी 2020 , ज्योतिष राशिफल

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