राहुदेव का 12 भाव में फल :
प्रथम भाव : जातक को कुंडली में राहु प्रथम भाव में हो तो समजना की मानवसृष्टि में उसका पहला जन्म हे , ऐसे जातको की व्यवहार में समज कम होती हे , बड़ी उम्र का हो तभी भी वो छोटे बच्चे जैसा ही रहता हे , मचुरिटी जल्दी नहीं आती , जातक जिद्दी , हठीला ,कभी न समझनेवाला, और लड़ायक होता हे ,इस राहु को पंचम , सप्तम , और नवम दृष्टि होने से शुभ फल का परिणाम अच्छा नहीं मिलता। इस त्रिकोण से मिलने वाली असरो में काफी बुरा प्रभाव पड़ता हे।
दूसरा भाव : कुंडली का दूसरा भाव धन, कुटुंब ,वाणी का होता होता हे। इस स्थान में बैठा हुआ राहु दो हिस्से कर देता हे ,एक हिस्सां कुटुंब का , और एक हिस्सा धन का। या तो कुटुंब का ख्याल रखो या तो धन सम्पन्ति। और ये दोनों चीज कभी भी इकट्ठी नहीं होने वाले ली। बुरी आदते, काला धन होता हे। ऐसा जातक बड़ी दुविधा में रहता हे ये की पैसा सँभालु या कुटुम्ब। वाणी के कुछ हद तक कटुता हो सकती हे। कुटुंब में भी लोग ऐसे जातक को अभिमानी ही मानने लगते हे।
तीसरा भाव : कुंडली का तीसरा भाव साहस - प्रकाराम और अर्धजागृत मन का होता हे , मन में आ रहे विचार और उससे बन रही परिकल्पना राहु की देन हे। ये राहु उपचय कहलाता हे और प्रबल भी बनता हे। जातक के बुरे काम करने के लिए हिम्मत बहुत होती हे , तीसरे भाव का समय रात 2 से 4 बजे तक का होता हे , इस समय पूरा जगत भर निंद्रा में होता हे। राहू और केतु से मुक्ति के उपाय चोरी ,डकैती सब इस समय पर ही होते हे , इसलिए तीसरे भाव का राहु अच्छा तो माना गया हे परन्तु कभी बुरे कर्म में भी जातक को ले जा सकता हे।
चतुर्थ भाव : चतुर्थ स्थान में बैठा राहु हमेशा जातक की सुख में कुछ कमी दर्शाता हे। जातक के पास उसकी इच्छा के मुताबिक सब भौतिक साधन होते हे ,लेकिन उसका संतोष कभी उसको नहीं होता। और दुसरो को दी हुई छोटी बड़ी चीजे और स्थावर मिलकत भी खुद के हाथ से चली जाती हे। अगर किसी जातक को कुंडली में अगर चतुर्थ भाव में राहु हो तो खुद की सम्पन्ति किसी को कभी दिखानी नहीं चाहिए और देनी भी नहीं चाहिए।
पंचम भाव : पंचम भाव में बैठा राहु किसी के प्रेम या एहसास को नहीं पहचान सकता। संतान को लेके हमेशा तकलीफ में रहते हे। ज्यादातर पहला संतान की मृत्यु होती हे और उसके बाद वाले संतान से ऋणानुबंध कम रहता हे। ऐसे जातक को मंत्र , तंत्र और गूढ़ विद्या में ज्यादा रस रहता हे। ऐसे जातक को मनुष्य के अलावा भूत प्रेत में ज्यादा लगाव रहता हे।
षष्ठम भाव : ये भाव रोग शत्रु का होता हे , लेकिन राहु के इस भाव में होने से शत्रुओ की हार होती हे , जिसको इस स्थान में राहु हो उनको कभी शत्रुओ की जरुरत नहीं पड़ती , ऐसे जातक का पाचन तंत्र बहुत ही निर्बल होता हे , इस लिए उनको पेट के रोगो की तकलीफ होती हे , इसके उपरान्त ऐसे रोग जिसकी खबर जब रोग ज्यादा फैलता हे तब ही पड़ती हे जैसे केन्सर। ये राहु की देन हे। इनके घर में नौकर टिकते नहीं हे और अगर टिकते हे तो दगा भी देते हे।
शनि का बार भाव मे फल
सप्तम भाव : इस भाव में बैठा राहु ज्यादा गैरसमज फैलाता हे। ऐसा जातक सोचता हे की उसने शादी करने में बहुत बड़ी भूल कर दी। इस बाबत को लेकर उनकी मान्यता जड़ हो जाती हे , ये भाव् जाहेर जीवन का होता हे। इसलिए ऐसा जातक जाहेर जीवन में और गृहस्थ जीवन में कभी भी संतुलन नहीं रख पाता। पत्नी को और ऑफिस में बॉस को समय नहीं दे पाता। समय कहा बीत जाता हे वो जातक को पता नहीं चलता। ऐसे जातक दूसरी ज्ञाति और समाज में शादी करते हे। और उनके लिए यही हितावह हे।
अष्ठम भाव : अष्ठम भाव में बैठा राहु जातक को ज्यादा तरंगी और रहस्मयी बना देता हे। उनकी सोच लोगो के पल्ले जल्दी पड़ती नहीं हे। उनकी कार्यशैली सबसे अलग होती हे। मृत्यु होने के बाद ही लोग उनको समाज सकते हे। जैसे की ओशो रजनीश, अल्बर्ट आइंस्टाइन। आठवा भाव् पश्चिम दिशा का हे इसलिए ऐसे जातको को प्रसिद्धि पश्चिम दिशा में ही मिलती हे। ऐसा जातक मोत के भय से जीता हे और रहस्यमई मृत्यु होती हे।
नवम भाव : राहु का इस भाव में होना मतलब राहु धर्म का कोई नया अनुसन्धान बनाएगा। लोगो से अलग उनकी जीवनशैली होती हे। धार्मिकता और आध्यात्मिकता के बिच की उनको पहचान होती हे। मंत्र तंत्र में ज्यादा विश्वाश रखते हे और ज्यादातर ऐसे जातक परदेश में ही निवास करते हे।
सप्तम भाव : इस भाव में बैठा राहु ज्यादा गैरसमज फैलाता हे। ऐसा जातक सोचता हे की उसने शादी करने में बहुत बड़ी भूल कर दी। इस बाबत को लेकर उनकी मान्यता जड़ हो जाती हे , ये भाव् जाहेर जीवन का होता हे। इसलिए ऐसा जातक जाहेर जीवन में और गृहस्थ जीवन में कभी भी संतुलन नहीं रख पाता। पत्नी को और ऑफिस में बॉस को समय नहीं दे पाता। समय कहा बीत जाता हे वो जातक को पता नहीं चलता। ऐसे जातक दूसरी ज्ञाति और समाज में शादी करते हे। और उनके लिए यही हितावह हे।
अष्ठम भाव : अष्ठम भाव में बैठा राहु जातक को ज्यादा तरंगी और रहस्मयी बना देता हे। उनकी सोच लोगो के पल्ले जल्दी पड़ती नहीं हे। उनकी कार्यशैली सबसे अलग होती हे। मृत्यु होने के बाद ही लोग उनको समाज सकते हे। जैसे की ओशो रजनीश, अल्बर्ट आइंस्टाइन। आठवा भाव् पश्चिम दिशा का हे इसलिए ऐसे जातको को प्रसिद्धि पश्चिम दिशा में ही मिलती हे। ऐसा जातक मोत के भय से जीता हे और रहस्यमई मृत्यु होती हे।
नवम भाव : राहु का इस भाव में होना मतलब राहु धर्म का कोई नया अनुसन्धान बनाएगा। लोगो से अलग उनकी जीवनशैली होती हे। धार्मिकता और आध्यात्मिकता के बिच की उनको पहचान होती हे। मंत्र तंत्र में ज्यादा विश्वाश रखते हे और ज्यादातर ऐसे जातक परदेश में ही निवास करते हे।
गुरु का बार भाव मे फल
दशम भाव : इस भाव में राहु कमाल का रिजल्ट देता हे। जातक को बड़ी ऊंचाई में ले जाता हे। बिना इच्छा रखे ही जिंदगी के तमाम सुख -भोग का आनंद इस जातक को मिलता हे। 36 साल से लेकर 42 साल तक ऐसा जातक पैसा अच्छा बना लेता हे और धन संचय भी अच्छा बना लेता हे। पद प्रतिष्ठा सब ऐसे जातक को मिलता हे। राजकरण में युक्ति प्रयुक्ति करके ये सफल होता हे।
एकादश भाव : ऐसे जातक के मित्र बहुत सारे होते हे। लेकिन उनके मित्रो को आशा रहती हे के ये जातक उनकी मदद करे। लेकिन जातक के इस मित्र में छुपे शत्रु भी बैठे होते हे जो इनका अहित सोचते हे। ऐसे जातक को ज्यादा भावनाओ में नहीं आना चाहिए। अगर उनके मित्र चले जाते हे तो उनको रोकना नहीं चाहिए। दो नंबर की आवक और एक से ज्यादा बिज़नेस में आवक अच्छी रहती हे। सट्टा और लॉटरी में अच्छा धन प्राप्त होता हे।
बारवा भाव : राहु के लिए ये भाव बिलकुल भी अच्छा नहीं हे। ये भाव मोक्ष का अर्थात दुनिया से बहार निकलने का रास्ता हे। इस स्थान में बैठा राहु दुःख, दर्द, कष्ट, जेल , रोग , जैसे बंधन में डालता हे। अगर जातक में शुभ कर्म किये होंगे तो मोक्ष तरफ ले जाएगा। राहू को प्रसन्न करने के उपाय नहीं तो फिरसे प्रथम भावमे अर्थात नया जन्म लेना पड़ेगा। या राहु जातक को किसी न किसी बंधन में अवशय डालता हे। यहाँ बैठा राहु जातक को पर्सनल कुंडली के अनुसार फल देता हे। जरुरी नहीं की यही फल मिले।
दशम भाव : इस भाव में राहु कमाल का रिजल्ट देता हे। जातक को बड़ी ऊंचाई में ले जाता हे। बिना इच्छा रखे ही जिंदगी के तमाम सुख -भोग का आनंद इस जातक को मिलता हे। 36 साल से लेकर 42 साल तक ऐसा जातक पैसा अच्छा बना लेता हे और धन संचय भी अच्छा बना लेता हे। पद प्रतिष्ठा सब ऐसे जातक को मिलता हे। राजकरण में युक्ति प्रयुक्ति करके ये सफल होता हे।
एकादश भाव : ऐसे जातक के मित्र बहुत सारे होते हे। लेकिन उनके मित्रो को आशा रहती हे के ये जातक उनकी मदद करे। लेकिन जातक के इस मित्र में छुपे शत्रु भी बैठे होते हे जो इनका अहित सोचते हे। ऐसे जातक को ज्यादा भावनाओ में नहीं आना चाहिए। अगर उनके मित्र चले जाते हे तो उनको रोकना नहीं चाहिए। दो नंबर की आवक और एक से ज्यादा बिज़नेस में आवक अच्छी रहती हे। सट्टा और लॉटरी में अच्छा धन प्राप्त होता हे।
बारवा भाव : राहु के लिए ये भाव बिलकुल भी अच्छा नहीं हे। ये भाव मोक्ष का अर्थात दुनिया से बहार निकलने का रास्ता हे। इस स्थान में बैठा राहु दुःख, दर्द, कष्ट, जेल , रोग , जैसे बंधन में डालता हे। अगर जातक में शुभ कर्म किये होंगे तो मोक्ष तरफ ले जाएगा। राहू को प्रसन्न करने के उपाय नहीं तो फिरसे प्रथम भावमे अर्थात नया जन्म लेना पड़ेगा। या राहु जातक को किसी न किसी बंधन में अवशय डालता हे। यहाँ बैठा राहु जातक को पर्सनल कुंडली के अनुसार फल देता हे। जरुरी नहीं की यही फल मिले।
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