राहु - विस्तृत जानकारी
राहु से विस्तार की बात केवल इसलिये की जाती है क्योंकि राहु जिस भाव और ग्रह में अपना प्रवेश लेता है उसी के विस्तार की बात जीव के दिमाग में शुरु हो जाती है,कुंडली में जब यह व्यक्ति की लगन में होता है तो वह व्यक्ति को अपने बारे में अधिक से अधिक सोचने के लिये भावानुसार और राशि के अनुसार सोचने के लिये बाध्य कर देता है जो लोग लगातार अपने को आगे बढाने के लिये देखे जाते है उनके अन्दर राहु का प्रभाव कहीं न कहीं से अवश्य देखने को मिलता है। लेकिन भाव का प्रभाव तो केवल शरीर और नाम तथा व्यक्ति की बनावट से जोड कर देखा जाता है लेकिन राशि का प्रभाव जातक को उस राशि के प्रति जीवन भर अपनी योग्यता और स्वभाव को प्रदर्शित करने के लिये मजबूर हो जाता है। राहु विस्तार का कारक है,और विस्तार की सीमा कोई भी नही होती है,पौराणिक कथा के अनुसार राहु की माता का नाम सुरसा था,और जब हनुमान जी सीताजी की खोज के लिये समुद्र पार कर रहे थे तो देवताओं ने हनुमानजी की शक्ति की परीक्षा के लिये सुरसा को भेजा था । सुरसा को छाया पकड कर आसमानी जीवों को भक्षण करने की शक्ति थी,हनुमान जी की छाया को पकड कर जैसे ही सुरसा ने उन्हे अपने भोजन के लिये मुंह में डालना चाहा उन्होने अपने पराक्रम के अनुसार अपनी शरीर की लम्बाई चौडाई को सुरसा के मुंह से दो गुना कर लिया,आखिर तक जितना बडा रूप सुरसा अपने मुंह का बनाने लगी और उससे दोगुना रूप हनुमानजी बनाने लगे,जब कई सौ योजन का मुंह सुरसा का हो गया तो हनुमानजी ने अपने को एक अंगूठे के आकार का बनाकर सुरसा के पेट में जाकर और बाहर आकर सुरसा को माता के रूप में प्रणाम किया और सुरसा की इच्छा को पूरा होना कहकर सुरसा से आशीर्वाद लेकर वे लंका को पधार गये थे। पौराणिक कथाओं के ही अनुसार सुरसा को अहिन यानी सर्पों की माता के रूप में भी कहा गया है। जब कभी राहु के बारे में किसी की कुंडली में विवेचना की है तो कहने से कहीं अधिक बातें कुंडली में देखने को मिली है। राहु चन्द्रमा के साथ मिलकर अपना रूप जब प्रस्तुत करता है तो वह अपनी शक्ति और राशि के अनुसार अपने को कैमिकल के रूप में प्रस्तुत करता है। तरल राशि के प्रभाव में वह बहता हुआ कैमिकल बन जाता है गुरु रूपी हवा के साथ मिलकर वह गैस के रूप में अपनी योग्यता को प्रकट करने लगता है,शनि रूपी पत्थर के साथ मिलकर वह सीमेंट का रूप ले लेता है,और वही शनि अगर पंचम भाव में होता है तो अनैतिकता की तरफ़ ले जाने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करने लगता है। शुक्र के साथ आजाने से राहु का स्वभाव असीम प्यार मोहब्बत वाली बातें करने लगता है और बुध के साथ मिलकर वह केलकुलेशन के मामले में अपनी योग्यता को कम्पयूटर के सोफ़्टवेयर की तरह से सामने हाजिर हो जाता है। सूर्य के साथ मिलकर राज्य की तरफ़ उसका आकर्षण बढ जाता है और जब राहु और सूर्य दोनो ही बलवान होकर पंचम नवम एकादस में अपनी युति राज्य की कारक राशि में स्थान बनाते है तो बडा राजनीतिक बनाने में राहु का पहला प्रभाव ही माना जाता है। मिथुन राशि में राहु का प्रभाव व्यक्ति के अन्दर भाव के अनुसार प्रदर्शित करने की कला को देता है और धनु राहु में राहु अपनी नीचता को प्रकट करने के बाद बडे बडे अनहोनी जैसे कारण पैदा कर देता है और व्यक्ति की जीवनी को आजन्म और उसके बाद भी लोगों के लिये सोचने वाली बात को बनाने से नही चूकता है।
Astrology in hindi, Hindi jyotish. Rahu gochar.
Rahu ki Vistrut Jankari
राहु को रूह का भी रूप दिया जाता है अगर यह अष्टम स्थान में वृश्चिक राशि का है तो यह शमशानी आत्मा के रूप में जाना जाता है.इस स्थान का राहु या तो कोई ऐसी बीमारी देता है जिससे जूझने के लिये जातक को आजीवन जूझना पडता है और धर्म अर्थ काम और मोक्ष के कारणों से दूर करता है या घर के अन्दर अपनी करतूतों से शमशानी क्रियायें आदि करने या खुद के द्वारा सम्बन्धित कारणों को समाप्त करने के बाद खाक में मिलाने के जैसा व्यवहार करता है,पैदा होने के पहले भी माता बीमार रहती है पिता को तामसी भोजनों पर विस्वास होता है और जातक के पैदा होने के बाद आठवीं साल की उम्र से कोई शरीर का रोग अक्समात लग जाता है जो आजीवन साथ नही छोडता है
उपायों से भी होगा चांडाल दोष में लाभ:
- योग्य गुरु की शरण में जाएँ, अपने गुरु की निस्वार्थ भाव से सेवा करें और आशीर्वाद प्राप्त करें। स्वयं हल्दी और केसर का टीका लगाएँ।
- निर्धन विद्यार्थियों को अध्ययन में सहायता करें।
- राहु ग्रह का जप-दान करने से लाभ होगा।
- गाय को भोजन कराएं एवं नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय बड़ों की राय अवश्य लें।
- अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें एवं प्रसन्न रहें।
- बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करें और अपने माता-पिता का आदर करें।
- नियमित रूप से स्वयं हल्दी और केसर का टीका लगाने से लाभ होगा।
- भगवान गणेश और देवी सरस्वती की आराधना करें और मंत्र का जाप करें।
- बरगद के वृक्ष में कच्चा दूध डालें और केले के वृक्ष का भी पूजन करें।
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