शनि की अन्य ग्रहो के साथ युति
शनि - सूर्य : शनि -सूर्य के सम्बन्ध को शास्त्र में बहुत ही बुरा मन जाता हे , क्युकी शनि और सूर्य ब्रह्मांड में एकदूसरे के खतरनाक शत्रु माने जाते हे। ये युति जातक के जीवन में बहुत ही चढ़ाव उतार लाती हे , भगवान् रामचंद्र की कुंडली में भी ये युति थी। शनि सूर्य का सम्बन्ध मतलब संघर्ष, हाहाकार , कष्ट इत्यादि , ऐसे संबंध वाले जातक जीवनभर परिश्रम करते हे। ऐसे जातको को ह्रदय रोग, ब्लडप्रेसर जैसे रोग होते हे। ऐसे जातक को पिता के साथ भी नहीं बनती यातो इनके पिता नथी होते। गोचर भ्रमण के दौरान अगर कुंडली के सूर्य परसे शनि का भ्रमण शुरू हो तब पिता के लिए कष्टदायी होता हे।
शनि - चंद्र : शनि चंद्र के सम्बन्ध को शास्त्र में विषयुति के नाम से जाना जाता हे। ऐसे जातक मन से बहुत ही निर्बल होते हे। क्युकी चंद्र को ज्योतिष में मन का कारक कहा जाता हे। शनि चंद्र का सम्बन्ध ज्ञानतंतुओं के लिए हानिकारक होता हे , ऐसा सम्बन्ध जातक की मानसिक तकलीफ में बढ़ावा करता हे , मन को निर्बल करता हे , कभी कभी संकटो का पहाड़ खड़ा कर देता हे , लेकिन ऐसे जातक जीवन में पैसा बहुत कमाते हे , और अच्छे पद पर रहकर सुख भोगते हे , लेकिन मन से दुखी होते हे।
शनि - मंगल : शनि मंगल की युति भी शत्रु की युति कहलाती हे। अभ्यास की दृष्टि से ये योग टेक्नीकल योग कहलाता हे , इंजीनियर , कोम्प्युटर और अन्य टेक्नीकल लाइन के लिए इस युति का होना शुभ माना जाता हे। लेकिन मंगल सेनापति ग्रह हे। मंगल साहस और निडरता के साथ जुड़ा हुआ ग्रह हे , इसलिए मंगल का शौर्य शनि के दबाव में हो तो मंगला की साहसिकता और साहस का नाश होता हे। ऐसे जातक गुनाखोरी में ज्यादा प्रवृत रहते हे।
शनि - बुध : शनि बुध की युति जातक के बुरे रास्ते पे ले जाती हे , इसलिए ऐसे जातक खुदकी शक्ति का उपयोग अच्छे मार्ग पर नहीं कर सकते , बेनंबरी धंधे के लिए ये योग बहुत ही फायदेकारक साबित होता हे , लेकिन कभी कभी कुछ अच्छे योग अगर कुंडली में बन रहे हो तो इस योग का अच्छा भी फल मिलता हे।
शनि - गुरु : शनि गुरु की युति जातक को आध्यात्मवाद की तरफ ले जाती हे , ऐसी युति या प्रतियुति जातक को शिथिल बनाती हे , शनि का मतलब के एकांत, कष्ट , दुःख और गुरु यानी धन कुबेर ,ज्ञान। शनि अगर गुरु के साथ हो तो ऐसे जातक पैसा खर्चने के मामलेमे बहुत ही कंजूस होते हे , उनके हाथ में से जल्दी पैसा नहीं निकलता।
शनि - शुक्र : शनि शुक्र की युति चारित्र्य के लिए हानिकारक होती हे ,ऐसी युति जातक के चारित्र्य को शिथिल बनाती हे , जातक बहुत से व्यसनों की और भागता हे , शुक्र लग्न जीवन का कारक ग्रह हे ,अगर ये युति किसी भी जातक की कुंडली में हे तो लग्न जीवन में तनाव एवं लग्न जीवन नष्ट होने की संभावना होती हे। कभी कभी सेक्सलाइफ में भी विध्नों का सामना करना पड़ता हे।
शनि - राहु : शनि राहु की युति जिस स्थान में होती हे वो स्थान का बुरा फल मिलता हे , ऐसी युति को श्रापित दोष भी कहा जाता हे , उपरान्त शनि जोभी स्थान का अधिपति होता हे ,उस स्थान का फल अच्छा नहीं देता . इसलिए ऐसा योग अशुभ कहलाता हे।
शनि - केतु : शनि केतु की युति जिस स्थान में होती हे वो स्थान का फल भी राहु की तरह मिलता हे, लेकिन जातक अगर आध्यात्मवाद की तरफ आगे जाता हे तो उनको बहुत ही अच्छी पहचान मिलती हे , ऐसी युति से जातक की कुंडलिनी भी जाग्रत हो जाती हे.
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