वास्तु शास्त्र क्या होता हैं ? - PART 1 ( VASTU SHASHTRA KYA HE ? )
‘वास्तु’ (vastu) शब्द का शाब्दिक अर्थ हैं-उपस्थित यानि वास करना होता हैं।निवास करने वाले स्थान को बनाने और सुसज्जित ढंग से सवारने के विज्ञान को ही वास्तु शास्त्र कहा गया हैं।वास्तु शास्त्र के मत आठों दिशाओं तथा पंचमहाभूतों, मेघ,भूमि,हवा,पानी,अग्नि आदि के गति को ध्यान मे रखकर बनाया गया हैं।इन सबको मिलाकर एक ऐसी प्रक्रिया लागू की जाती हैं जो मनुष्य के रहने के स्थान को सुखमय बनाने का कार्य करती हैं। संस्कृत मे कहा गया हैं आज के समय मे घर के निर्माण मे वास्तु शास्त्र ( Vastu shahtra ) बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं। मान्यता हैं कि यदि वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का निर्माण होता हैं तो ये हम सभी को दुःख,दरिद्रता,बिमारियों से कोसों दूर रहते हैं।
वास्तु शास्त्र किस लिए होता हैं ?
वास्तुशास्त्र का मुख्य विषय वास्तु विज्ञान से हैं। वास्तु विज्ञान से तात्पर्य भवनों के निर्माण कला से हैं, वास्तुकला वास्तुविज्ञान को एक नवीन आयाम देती हैं।वास्तु शास्त्र घर ,प्रासाद, भवन और मंदिर निर्माण करने का पुराना भारतीय विज्ञान हैं जिसे आज के समय के विज्ञान वास्तु कला का प्राचीन स्वरूप माना जा सकता हैं। हमारे जीवन मे जिन वस्तुओं का दैनिक जीवन मे उप्रयोग हैं उन वस्तुओं को किस प्रकार रखा जाए यह वास्तु हैं, वस्तु शब्द से वास्तु का निर्माण हुआ हैं।वास्तु का नींव दक्षिण भारत मे महान परम्परागत साधु मायन को जिम्मेदार माना जाता हैं और उत्तर भारत मे विश्वकर्मा को माना जाता हैं।
वास्तु शास्त्र एवं दिशाएँ : Vastu aur dishaaye
हम सभी जानते हैं कि उत्तर ,दक्षिण पूरब ,पश्चिम ये चार मूल दिशाएँ ही।वास्तु विज्ञान मे इन चारो दिशाओं केअलावा चार विदिशाएँ हैं। मूल दिशाओं की मध्य की दिशा ईशान,आग्नेय,नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा गया है।
गृह निर्माण, भूमि पूजन और नीव पूजन के लिए शुभ मुहूर्त
1. वास्तुशास्त्र मे पूर्व दिशा ( Vastu shastra aur purva disha )
पूर्व दिशा वास्तु शास्त्र मे बहुत महत्वपूर्ण मानी गयीं है क्योंकि पूर्व दिशा से सूर्य उदय होई हैं, पूर्व दिशा के स्वामी देवताओं के राजा इन्द्रदेव हैं। यह सुख समृद्धि का कारक हैं।
2. वास्तु शास्त्र मे आग्नेय दिशा ( Vastushastra aur agnee disha )
आग्नेय दिशा पूर्व और दक्षिण के बीच की दिशा को कहते है इस दिशा मे रसोईघर का निर्माण वास्तु के दृष्टि से उत्तम होता है।
3. वास्तु शास्त्र मे दक्षिण दिशा ( Vastu shastra aur dakshin disha )
दक्षिण दिशा के स्वामी यमदेव हैं।गृह स्वामी के निवास के लिए यह उत्तम हैं और सुख समृद्धि का प्रतीक हैं।
4. वास्तु शास्त्र मे नैऋत्य दिशा ( Vastusshastra aur nerutya disha )
नैऋत्य दिशा दक्षिण और पश्चिम के बीच के दिशा को कहते है,इसके दिशा के स्वामी राक्षस हैं ।
5. वास्तु शास्त्र मे ईशान दिशा ( Vastushastra aur ishan disha )
ईशान दिशा के स्वामी भोलेनाथ होते हैं, इस दिशा मे कभी भी शौचालय नहीं बनवाना चाहिए,जलकूपो और नलों का इस दिशा मे होना उचित होता हैं।
जाने वास्तु शास्त्र का क्या महत्व ? ( Vastushastra ka mahatva (
वास्तु शास्त्र स्वयं मे एक प्रकार का विज्ञान हैं,प्राचीन काल इसका जन्म एवं विकास हुआ । वास्तु शास्त्र का विशेष महत्वपूर्ण योगदान हैं ।वास्तु शास्त्र का हमारे जीवन के सुख समृद्धि मे विशेष महत्वपूर्ण योगदान है।वास्तु शास्त्र का प्रयोग आधुनिक युग मे हर एक मनुष्य कर रहा हैं जिसके सहायता से कोई भी दोष से मुक्ति पायी जाती हैं।हमारे दैनिक जीवन मे प्रयोग किये जाने वाले वस्तुओं को व्यवस्थित ढ़ग से रखना भी वास्तु ही हैं,वास्तु ही हैं जिसके सहायता से हम वस्तुओं को व्यवस्थित ढंग से रखकर हम अपने जीवन मे हर्षोल्लास का पैगाम लाते हैं।वास्तु दोष होने पर हमें “ऊँ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए।इस महान मंत्र का जाप करके हम अपने वास्तु दोषो से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।वास्तु शास्त्र भूमि,दिशाओं और ऊर्जा के सिद्धांत पर कार्य करता हैं।यह किसी निर्माण के कारण होने वाले समस्याओं के कारण व उसका निवारण भी बताता हैं।
जाने वास्तु शास्त्र के अनुसार
1. रसोई घर की स्थिति
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की रसोई घर के भूखंड के अग्निकोण मे चाहिए। रसोई के बाहर से देखने पर चूल्हा(गैस) कि अग्नि नहीं दिखाई देनी चाहिए । ईशान कोण मे रसोई घर नहीं बनवाना चाहिए उस स्थान पर पीने के पानी का प्रबंध करवाना चाहिए।वास्तु के अनुसार पूजा घर रसोई घर के ऊपर नहीं होना चाहिए।
2. घर मे भगवान मंदिर की स्थिति
वास्तु के अनुसार घर मे भगवान के मंदिर का वास्तु पूर्व मुखी या उत्तर मुखी होना उचित माना गया हैं,क्योंकि भगवान का मुख पूर्व की ओर होना शुभ संकेत माना गया हैं,पूजा घर का ईशान कोण मे होना उचित माना गया हैं। पूजा घर वास्तु मे कुलदेवता या देवी का स्थान अवश्य होना चाहिए। to be continued ..........
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