भगवान शिव : कुंडली विश्लेषण - श्रवण नक्षत्र

Why Shiva wears an elephant's skin | Shiva hindu, Lord shiva ...

भगवान शिव : कुंडली विश्लेषण - श्रवण नक्षत्र


जो जीव शिव की पूजा करता हे उसका मोक्ष निश्चित हे , भगवान शिवकों महादेव कहते हे , क्यूकी वो सर्व देवो के देव हे , शिव जी को आशुतोष , शिवजी , भोलेनाथ , भूतेश्वर , महाकाल , सोमेश्वर , ऐसे असंखय नाम द्वारा जाना जाता हे , हर साल महा वद चौदश के किन महाशिवरात्री का उत्सव आता हे ।
भगवान शिव का जन्म प्राचीन पाण्डुलिपि अनुसार मेष लग्न मे हुआ हे, लग्न मे मंगल और सूर्य के बेठ जाने से शिवजी का गुस्सा अद्ब्य और असह हे , जन्मकुंडली के पंचम भाव का स्वामी मतलब संतान और विध्या भाव का स्वामी सूर्य स्वगृही मंगल के साथ बिराजमान हे ।

भगवान शिव के लग्न स्थान मे मंगल और सूर्य बलवान होकर और दोनों ग्रह अग्नितत्व के होकर , और उनकी तीसरी आँख मे सूर्य का वास होने से भगवान शिव पृथ्वी पे रहनेवाले कोई भी जीव और पदार्थ को भस्मीभूत करने की शक्ति रखते हे ,  उनके चतुर्थ भाव मे बेठा उच्च का गुरु भगवान शिव को देवलोक और राक्षसलोक उपरांत मानवलोक के बीच बहुत प्रसिद्धि दी हे , गुरु कर्क राशि मे होने की वजह से , और जलतत्व मे होने के कारण गंगा को खुद की जटा मे धारण कर के वसुंधरवासीओ को अमरुतरुपि गंगा की भेट दी हे , भगवान शिव कु कुंडली मे तृतीय भाव मे राहू और चन्द्र की युति हे ।

 इस युति के कारण भगवान शिव राक्षश जाती को भस्मीभूत करके देवो को कवच देते थे , उनकी रक्षा करते थे । आधारभूत सूत्रो के अनुसार तमिलनाडू और केरल मे भगवान शिव का जन्मदिन पोष सूद चतुर्दशी के दिन मनाया जाता हे , लेकिन महाशिवरात्री का उत्सव महा वद चौदश के दिन ही मनाया जाता हे । और ये धार्मिक उत्सव भी शिवजी और पार्वती के विवाह के साथ जुड़ा हुआ हे ( रेफ़्र्न्स : पार्वतीसंहिता ) 


देवनागरी लिपि और पांडु लिपि अनुसार भगवान शिव का जन्म मेष लग्न , आद्रा नक्षत्र , मिथुन के चन्द्र मे हुआ हे । और उनका विवाह माँ पार्वती के साथ मकर के चन्द्र , श्रवण नक्षत्र मे हुआ हे । श्रवण नक्षत्र चन्द्र का नक्षत्र हे । इसीलिए शिव पार्वती का दाम्पत्य जीवन बहुत ही शीतल और आनंदमय था , भगवान शिव की कुंडली मे , शुक्र मीन राशि मे  उच्च का और मंगल मेष राशि मे स्वगृही होकर लग्न जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रह शुरा आने मंगल की ये दशा होने के कारण उनका लग्न जीवन काफी अच्छी तरह से गुजरा । 
भाग्यस्थान मे केतू उच्च का और आयुषयभाव पर गुरु की दृष्टि होने की वजह से शिवजी अमर हो गए ।  

विष्णुपुराण , ब्रह्मपुराण, और लिंग पुराण के अनुसार भगवान शिव अमर हे , इसके उपरांत दुरगसप्तशती , देवी भागवत , के अनुसार भगवान शिव जल के अंदर लुप्त हो गए और पाताल मे जाकर पृथ्वी के सात भाग कर दिये थे । देवी भगवात के अनुसार भगवान शिव की माता का नाम देवी हे । और वही से देवी भागवत का जन्म हुआ था । 

एक दंतकथा एसी भी हे की देवी के मन से भगवान शिव की उत्पति हुई  और उसकेबाद ब्रह्मांड मे श्री विष्णुजी और श्री ब्रहमाजी का जन्म हुआ , विष्णुपुराण अनुसार भगवान शिव का जन्म भगवान विष्णु के ललाट मे बेठे हुए आज्ञाचक्र से हुआ हे । और ब्रहमाजी का जन्म विष्णु भगवान की नाभि मे से हुआ हे ।, भगवान शिव का जन्म विष्णु भगवान के आज्ञाचक्र से हुआ हे इसलिए वो हमेशा समाधि ग्रस्त ही रहते हे । 

भगवान शिव को मनाने से पहले या उनकी पूजा करने से पहले सभी जातक को भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए । भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए जातक को सुबह जल्दी उठकर  लघुरुद्री के 11 पाठ का पठन करना चाहिए , इसके उपरांत हर सोमवार को शिवलिंग पे दूध , बिलीपत्र , काले तिल अर्पण करना चाहिए । मारुति पुराण के अनुसार भगवान शिव की कुंडली मे लाभस्थान मे स्व्गृही शनि हे इसलिए हर शनिवार शिवलिंग पर दूध , गन्ने का रस , काले तिल , बिली अर्पण करके महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करनेसे शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलती हे । और जातक धर्म , भक्ति , आध्यात्मवाद , की और जाकर मोक्ष प्राप्त करता हे ।

पर्वतीसंहिता , विष्णु पुराण , ब्रह्म पुराण , मारुति पुराण , भृगु संहिता , पाण्डुलिपि  और दूसरे  शास्त्र की सहाय से ये लेख तैयार किया गया हे , इनमे कुछ अपवाद भी हो सकते हे , लेकिन भगवान शिव श्रद्धा का दूसरा नाम हे , इसलिए यहा दी गयी माहिती को किसी भी प्रकार के विवाद के बिना ग्रहण करने का नम्र सुचन हे । 

जय भोले

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