परिवर्तन योग क्या होता हे ? - Parivartan Yog in Kundli .
जब दो ग्रह परस्पर एक दुसरे की राशी
में रहते हे तो परिवर्तन योग की रचना होती हे . जेसे की मंगल शुक्र की वृषभ में
स्थित हो और शुक्र मंगल की मेष राशी में स्थित हो तभी मंगल और शुक्र परिवर्तन योग
में हे ऐसा कहा जाता हे . ग्रहों की बिच होने वाली युति , दृष्टि आदि में परिवर्तन
योग सबसे ज्यादा बलवान माना जाता हे . इसीलिए कुंडली में परिवर्तन योग का महत्व बढ़
जाता हे . Parivartan yog in kundli लग्नस्थान से शुरू होकर व्यवस्थान तक के स्वामीको मिलाकर कुल ६६ प्रकार
के परिवर्तन योग बनते हे .
श्री मंत्रेश्वर फलदीपिका में तिन
प्रकार के परिवर्तन योग का वर्णन किया हे .
दैन्य योग :
जब परिवर्तन योग में
होनेवाले ग्रह में से कोई एक ग्रह छठे , आठवे और बारवे भाव का स्वामी होता हे तभी दैन्य
योग की रचना होती हे . छठा , आठवा और बारवा स्थान दुस्थान हे . सामान्य तरीके से
ये अशुभ प्रभाव देते हे . दैन्य योग अशुभ असर के अंतर्गत आता हे . जिन भाव के साथ
ये योग जुड़ा हुआ होता हे उस भाव को लेकर जातक निष्फलता और अवरोध का अनुभव करता हे
. अगर सही तरीके से देखा जाए तो शुभ भाव के शुभ प्रभाव की वजह से दुस्थान बलवान
बनता हे . परन्तु दुस्थानाधिपति के नकारात्मक और अशुभ प्रभाव की वजह से दुसरे शुभ
भाव को नुक्सान होता हे . उदारहण के तौर पर अष्टमेष नवं भाव में स्थित हो और नवमेश
अष्टम भाव में स्थित हो तो दैन्य योग की रचना होती हे . यही पर नवम स्थान अष्टमेश
के अशुभ प्रभाव के कारण नुक्सान में रहेगा जबकि अष्टमेश नवम शुभ भाव प्रभाव के कारण
बल प्राप्त करेंगे . यहाँ पर अष्टमेश भाव के प्रति यहाँ फलादेश दिया जाता हे की जातक
के पिता ( नवम भाव ) द्वारा वारसाई धन की प्राप्ति होगी अथवा तो अगर जातक गूढ़ ,
रहस्मय और आध्यात्मिक चीजो ज्ञान देनेवाला बनेगा .Rashifal 2021
जबकि नवम भाव के लिए ये फलादेश दिया
जाएगा की जातक के पिता का जीवन दुःख , अवरोध ,और पीड़ा से भरा हो सकता हे अगर तो
जातक के भाग्य को हानि पहोच सकती हे . ( अष्ठम भाव )
खल योग :
जब परिवर्तन योग से जुड़े हुए
ग्रह में से कोई एक ग्रह तृतीयभाव का स्वामी होता हे तो खल योग की रचना होती हे .
खल योग से जुड़े हुए ग्रह अगर छठे , आठवे ,बारवे भावका स्वामी नहीं होना चाहिए . क्युकी
फिरतो ये दैन्य योग कहलायेगा . खल योग अस्थिर असरो को जन्म देता हे . जिस भाव से
जुड़ा हुआ होता हे उन भावो से जुड़ने वाली चीजो के बारेमे जातक चढ़ाव उतार महसूस करता
हे . तृतीयस्थान कम अशुभ स्थान माना गया हे . वो साहस ,शक्ति , और उर्जा का स्थान
हे . तृतीय भाव जिस स्थान के साथ परिवर्तन योग में जुड़ा होता हे उस भाव से
जुडनेवाली हर चीज पर जातक खुदकी उर्जा लगा देता हे . Grah gochar उदाहरण के तौर पर जब तृतीय और
दसमभाव के बिच परिवर्तन योग हो तो जातक खुदकी कारकिर्दी बनाने में खुदकी पूर्ण
शक्ति और साहस लगा देता हे .
महा योग :
जब शुभ भाव के स्वामी
परिवर्तन योग से जुड़े हो तब महा योग की रचना होती हे . ये शुभ स्थान 1 , 2 , 4 , 5
, 7 , 9 , 10 , और 11 हे. इस योग में तीसरे , छठे, आठवे और बारवे भाव के स्वामी नहीं जुड़े होने चाहिए नहीं तो ये दैन्य
और खल योग की रचना होती हे . महा परिवर्तन योग शुभ फल देता हे . उससे जुडी हुई हर
बाबत से ये शुभ परिणाम देता हे . जातक सुख, समृधि, और सफलता की प्राप्ति करता हे . All grah gochar
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