जयेष्ठा नक्षत्र : जयेष्ठा के नक्षत्र के बारे में कुछ बाते।

 
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जयेष्ठा नक्षत्र : जयेष्ठा के नक्षत्र के बारे में कुछ बाते। 

"जयेष्ठा" शब्द का सामान्य अर्थ बुजुर्ग होता हे , यानी घर के मुखिया। इसके अलावा इनका दूसरा अर्थ भी होता हे , जैसे श्रेष्ठ, उच्चतम , अग्रणी , मुख्या , वाजिंत्र , आदि होता हे , सबसे रसप्रद बात ये हे की ये सब अर्थ नक्षत्र के देवता इंद्र में समाविष्ट होता हे , इंद्र देवो के मुख्य राजा हे , उच्चपद पर बिराजमान हे , उनके दरबार में वाजिंत्र के ताल पर अप्सरा नृत्य करती हे।  इंद्र बल , बुद्धि , साहस , शक्ति और महत्वाकांक्षा से भरपूर हे।  शक्तिशाली होने के उपरान्त दयावान , देवरक्षक , और प्रजापालक हे।  

यश, पद , ऐश, आराम , समृद्धि इंद्र की पहचान हे।  सोमरस इंद्र को अतिप्रिय हे।  अगर वैदिक आधार से देखा जाए तो इंद्र का व्यक्तित्व प्रसंशनीय हे।  लेकिन कुछ महाकाव्यों और पुराणों में इंद्र ने माया , कूटनीति , और छलकपट करने वाला माना गया हे।  कुछ अवगुण के कारण इंद्र को बहुत से पडकार का सामना करना पड़ता हे।  खुद के अभिमान के कारण स्वर्गलोक का आधिपत्य भी इंद्र के हाथ से चला गया , खुदकी वासना को पूरी करने के लिए इंद्र ने मायासे गौतमऋषि का वेश धारण करके ऋषिपत्नी के साथ अनैतिक सम्बन्ध रखते हे , और उसी के कारण उनको श्राप मिलता हे .


इस नक्षत्र के प्रभावाली व्यक्ति में देवराज इंद्र के उपरोक्त गुण-अवगुण कम या ज्यादा प्रमाण में अवशय देखा जाता हे , यहाँ ये समझना हे की इस नक्षत्र के सम्बंधित २ ग्रह बुध और मंगल बलवान होंगे तो इस नक्षत्र की ऊर्जा इंद्र सामान बल , साहस , पद , ऐश - आराम , सब मिलेंगे , लेकिन साथमे अहम् , शक्ति का दुरपयोग, परस्त्री के साथ सम्बन्ध , और गुरु और बुजुर्ग का अपमान ऐसे  जातक करते हे , और जीवनमें बहुत से कष्टों का सामना करना पड़ता हे। 


दूसरी एक बात भी निश्चित हे की जयेष्ठा शब्द का एक अर्थ दुर्भाग्य भी होता हे , इस नक्षत्र के सभी चरण वृश्चिक राशि में होते हे और ज्योतिष शास्त्र के मत अनुसार अंतिम चरण में जिनका जन्म होता हे उस व्यक्ति को दुर्भाग्य योग माना जाता हे। 



जिसके परिहार रूप नक्षत्र शांति कराने का विधान भी शास्त्र में हे।  दूसरी रसप्रद बात यह हे की जैसे जयेष्ठ शब्द के अलग अलग अर्थ इंद्र के चरित्र का प्रतिबिम्ब समजाते हे वैसे ही वृश्चिक राशि भी इन सभी बातो का प्रतिनिधित्व करती हे।  वृश्चिक राशि स्वयं कामवासना, गुढ़विद्या , छलकपट , तप , साधना ,माया-मुश्केली, पडकार  , रहस्य्मय बाबत , और आध्यात्मिकता की और निर्देश करती हे। ऐसे अगर हम जयेष्ठा और वृश्चिक राशि का मिलान करे तो अर्थ इंद्र ही निकलता हे।  


अगर ये नक्षत्र कुंडली में बलवान हो तो कोई अज्ञात  शक्ति मुसीबत के समय पर आपका रक्षण जरूर करेगी ,लेकिन अगर बुध और मंगल की स्तिथि मजबूत हो तो ऐसी व्यक्तिओ को खुद के स्वरक्षण के लिए सिद्ध किया हुआ तावीज अवशय धारण करना चाहिए।  और इसका विधि विधान करवाना चाहिए।

जयेष्ठा नक्षत्र में जन्मे लोगो की पॉजिटिव ऊर्जा :  नियम में चुस्त , आत्मविश्वास से भरपूर , साहस , तर्कशक्ति ,यश पद प्राप्ति , महत्वाकांक्षा , चतुरता , दया , करुणा ,.


जयेष्ठा नक्षत्र में जन्मे  लोगो की नेगटिव ऊर्जा : छलकपट , मायावी और भ्रामक बात करके दूसरे की अंगत बात जान्ने में इनको बड़ा रस होता हे ,और इसका दुरपयोग भी ये लोग करते हे , रोगमय जीवन ,वर्चस्वभावना  के कारण कुटुंब में अप्रिय। 


जयेष्ठा नक्षत्र में जन्मे लोगो का कार्यक्षेत्र : धर्म ध्यान , राजकरण ,कॉम्युनिकेशन , फायनान्स , लॉ , साहित्य , पत्रकारत्व, शिक्षण , पोलिस आर्मी , गुढ़विद्या ,खनिज , गुप्तचर संस्था , आयकर विभाग , खुद के शरीर को नुक्सान करके आजीविका पैदा करने वाले। 


जयेष्ठा नक्षत्र में होनेवाले शुभ कार्य : मंत्र - तंत्र - साधना - गुढ़विद्या - मैजिक के लिए शुभ .

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