शनि का गोचर फल
जब कुंडली में जन्म कालीन चंद्र राशि अर्थांत जन्म से गोचर का शनि तृतीय , षष्टम ,और एकादश भाव में शुभ करता माना गया हे , और अन्य भावो में शनि का गोचर फल अशुभ ही माना जाता हे.प्रथम भाव : गोचरवश शनि जब प्रथम भाव अर्थात जन्म राशि पर आता हे तो पीड़ा ,दुःख होता हे , शरीर निस्तेज रहता हे और बुद्धि काम ही नहीं करती , मानसिक और शारीरक पीड़ा होती हे , सभी कार्यो में असफलता मिलती हे , अपमान का दर रहता हे ,और राज्य से बंधन का दर रहता हे ,शास्त्र से भय लगा रहता हे , दूर स्थानों की यात्रा होती हे ,भाईओ तथा स्त्री से विवाद, जगडा होता हे , मित्र से धोखा मिलता हे ,सामाजिक अथवा आर्थिक दंड, जुर्माने की सम्भावना रहती हे , विदेश में जाकर दुःख भोगना पड़ता हे , पुत्र से विवाद होता हे , सिर में चोट, आँखों के विकार परेशान करते हे. Astrology in hindi .
दूसरा भाव : जन्म राशि से गोचर वश शनि जब दूसरे भाव में संचार करता हे तो धन हानि एवं कुटुंब सम्बन्धी कष्ट देता हे , कलह-कलेश होता हे और बिना कारण विवाद, जगडा हो जाता हे ,स्वजनों से बैर ,विरोध होता हे ,धन की हानि होती हे , और कार्यो में सफलता मिलती हे , लाभ और सुख में अत्यधिक कमी आ जाती हे , घर छोड़कर बाहर जाना पड़ता हे , विदेश भ्रमण एवं यात्रा की सम्भावना रहती हे ,पत्नी को कष्ट और परेशानी होती हे ,स्वास्थय की परेशानी बढ़ जाती हे ,और व्यक्ति शारीरिक पक्ष से कमजोर अनुभव करता हे , पैसे , धन को बहुत संभलकर रखना चाहता हे , और कम ही छोड़ता हे .
तृतीय भाव : गोचरवश शनि जब तृतीय भाव में आता हे तो शुभ फलो को प्रदान करता हे ,धन लाभ होता हे और प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती हे ,नौकरी प्राप्त होती हे ,और मन-चित प्रसन्न होता हे ,व्यक्ति को पशु धन की प्राप्ति होती हे ,भूमि आदि प्राप्ति के लिए यह अच्छा समय होता हे , पदोन्ति के अवसर मिलते हे , आरोग्य, पराक्रम , और सुख में वृद्धि होती हे ,शत्रु परास्त होते हे ,समाज में सम्मान प्राप्त होता हे , स्वास्थय एवं आर्थिक पक्ष अच्छा रहता हे , भाईओ से लाभ होता हे , और सहायता मिलती हे . Astrology in hindi
चतुर्थ भाव : जन्म राशि से जब शनि गोचरवश चतुर्थ भाव आता हे , तो व्यक्ति सुखो से कमी महसूस करता हे , व्यक्ति के मन में अच्छे भाव नहीं रहते हे ,यात्रा में कष्ट होता हे ,समय अत्यंत अपमानजनक सिद्ध होता हे , व्यक्ति के मन में ठगी और कुटिलता आ जाती हे , इस अवधि में शत्रुओ और रोगो में वृद्धि होती हे , व्यक्ति परेशां रहता हे , स्थान, घर, आदि परिवर्र्तन और तबादला होता हे ,धन की कमी रहती हे , सम्बन्धियों से वियोग होता हे , और जनता तथा सरकार द्वारा विरोध होता हे , माता की और से परेशानी होती हे , मित्रो, स्नेहिओ , पत्नी से निराशा मिलती हे , पत्नी का स्वास्थय अनुकूल नहीं रहता. शनि साढ़ेसाती के उपाय
पंचम भाव : जन्म राशि में गोचरवश सूर्य पुत्र जब पंचम आता हे तो योजनाओ के कार्यो में बाधाएं उत्पन्न होती हे , बुद्धि भ्रम उत्पन्न हो जाता हे , जनता से ढगी करने की सम्भावना रहती हे ,पुत्र को कष्ट होता हे , पुत्र की बिमारी के कारण परेशानी होती हे ,पत्नी से वैमनस्य रहता हे , और पत्नी को वायु रोगो की सम्भावना रहती हे , धन और सुख की कमी आती हे और अनेक प्रकार का भय रहता हे , पेट विकार और सट्टे आदि से हानि होती हे.
षष्ठ भाव : गोचरवश शनि जब जन्म राशि से छठे भाव में संचार करता हे तो रोगो से मुक्ति मिलती हे , व्यक्ति का स्वास्थय अच्छा रहता हे और सुख मिलता हे , शत्रुओ पर विजय प्राप्त होती हे , भूमि , प्लाट , मकान आदि की प्राप्ति होती हे , धन लाभ होता हे और ख़ुशी होती हे , प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती हे , पारिवारिक जीवन उत्तम रहता हे. Hindi jyotish
सप्तम भाव : जन्म राशि गोचरवश सूर्य पुत्र शनि जब सप्तम भाव में संचार करता हे , तो स्थान परिवार करता हे , व्यर्थ की कस्टप्रद यात्राएं होती हे , घर तक छोड़ना पड़ता हे और बार बार यात्रा रहती हे , स्त्री रोगी रहती हे , और स्त्री को कष्ट झेलना पड़ता हे , धन की हानि होती हे ,और मानसिक बेचैनी रहती हे ,मान - हानि का दर रहता हे , और धन में कमी आती हे , नौकरी और व्यापार छूट जाने तक की नौबत आ जाती हे , व्यक्ति बीमारी के कारण परेशान होता हे , यात्रा में दुर्घटना की सम्भावना आती हे , बुरे स्वप्न आते हे और नजर का धोखा होता हे , जीवन साथी में विवाद संभव होता हे.
अष्ठम भाव : गोचरवश शनि जब इस स्थान में आता हे , तो अनेक प्रकार के कष्ट लाता हे , गुप्त शत्रुओ द्वारा कष्ट पहुंचाता हे , व्यक्ति कुसंगतियों के कारण असफलता के मार्ग पर चलने लगता हे , जुए और दुष्ट व्यक्तिओ को संगती के कारण कई प्रकार की परेशानिया झेलनी पड़ती हे , अपमानित होने का दर लगा रहता हे , सरकार की और से भय रहता हे , पुत्र से वियोग होता हे और मन दुखी होता हे ,स्त्री को अतयधिक कष्ट की सम्भावना होती हे , धन की हानि होती हे ,और कार्यो में सफलता नहीं मिलती , प्राय: बाधा , रुकावट , विलम्ब आदि का सामना करना पड़ता हे , नजर का धोखा हे , अशुभ घटनाएं घटित होती हे.
नवम भाव : सूर्य पुत्र शनि गोचरवश जब नवम भाव आता हे तो दरिद्रता उत्पत्र करता हे , और दुखो का कारण बनता हे , मित्रो और सम्बन्धिओ से कमी आती हे , दुःख , रोग , और शत्रुओ में वृद्धि होती हे ,भातृ वर्ग में अनबन रहती हे ,मित्रो से कष्ट मिलता हे ,लाभ में अतयधिक कमी आ जाती हे , बंधन एवं आरोपों का डर रहता हे , धर्म के कार्यो से मनुष्य पीछे हट जाता हे , यात्राएं कष्टकारी रहती हे , धार्मिक यात्रा सफल नहीं होती परेशानी होती हे , किस्मत साथ देती प्रतीत नहीं होती , बुजुर्गो की और से परेशानी होती हे.
दशम भाव : जन्म राषि से गोचरवश जान सूर्य पुत्र शनि दशम भाव आता हे तो आजीविका के साधनो, नौकरी , व्यापार आदि में परिवर्तन देता हे , यही नहीं इनके सम्बन्ध में विध्न , बाधाएं आती हे और परेशानी होती हे ,धन का खर्चा होता हे ,कार्यो में सफलता नहीं मिलती ,सूर्य पुत्र शनि यहाँ दाम्पत्य जीवन को भी प्रभावीत करता हे , पत्नी से वैमनस्य के कारन उसके पृथकरण की सम्भवना रहती हे ,व्यक्ति पाप कर्म करता हे और मानसिक व्यथा सहन करनी पड़ती हे , अनावशयक व्यय होने से आर्थिक स्तिथि भी गड़बड़ होने लगती हे , छाती, ह्रदय रोगो ,और रक्तचाप ,की सम्भावना बानी रहती हे , घर से दूर रहना पड़ता हे और जनता का विरोध भी सहना पड़ता हे , घरेलु परेशानी झेलनी पड़ती हे और अकस्मात् हानि का डर रहता हे.
एकादश भाव : गोचरवश शनि जब जन्म राशि से एकादश भ्रमण करता हे , तो शनि सभी कार्यो में सफलता प्रदान करने में पूर्ण सक्षम होता हे , सम्मान , धन - वैभव मिलता हे , मनोकामनाएं पूर्ण होती हे , नयी नियुक्ति का समय होता हे , नौकरी में पदोन्ति मिलती हे , भाइयो से लाभ एवं सहायता मिलती हे , स्त्री वर्ग द्वारा लाभ प्राप्ति होती हे , रोगो से मुक्ति मिलती हे और स्वास्थय अच्छा रहता हे , शनि जिन वस्तुओ का कारक हे , जैसे भूमि, प्लाट , लोहा , मशीनरी ,पत्थर ,सीमेंट , कोयला ,चमड़ा ,ठेकेदारी , शराब के ढके आदि से लाभ होता हे.
द्वादश भाव : जन्म राशि से जब गोचरवश शनि बारवे भाव में करता हे तो मित्रो ,रिश्तेदारों , से मतभेद तथा घर से दूर रहने पर विवश होना पड़ता हे , धन हानि एवं भाग्य की निर्बलता देखनी पड़ती हे ,सम्बन्धियों तथा शुभ प्रतिष्ठित लोगो से मतभेद हो जाता हे , धन के अतयधिक व्यय के कारन परेशानी होती हे ,धन नाश द्वारा भाग्य पतन का दर लगा रहता हे , यहाँ शनि संतान के लिए कष्टकारी होता हे , संतान का दुःख झेलना पड़ता हे , दूर की यात्रा करनी पड़ती हे जिसमे परेशानी और दुःख होता हे , स्वास्थय ख़राब रहता हे और अस्पताल जाना पड़ता हे , तबदीली होती हे ,और आय से व्यय बहुत अधिक रहती हे , पत्नी से मन मुटाव और कुटुंब से दूर रहना अथवा भटकना पड़ता हे.
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