मंगल ग्रह के बारेमे कुछ रोचक बाते



 

मंगल ग्रह के बारेमे कुछ रोचक बाते

कुंडली में मंगल दोष कब नहीं होता .????

जब प्रथम स्थान में मेष का मंगल , चौथे स्थान में वृश्चिक का मंगल ,सातवे स्थान में वृषभ का मंगल , आठवे स्थान में कुम्भ का मंगल और बारवे स्थान में धन का मंगल अगर कुंडली में हो तो मंगल दोष नहीं माना जाता मतलब व्यक्ति मांगलिक नहीं होता .

लग्नमा मेष , वृश्चिक , और मकर राशि का मंगल केंद्र में हो और त्रिकोण में हो ऐसे जातक का मंगल कुछ अनिष्ट नहीं कर सकता.

प्रथम भाव : प्रथम भाव में बैठा मंगल जातक स्वस्थ होता हे , परन्तु आठवीं दृष्टि के कारण गुप्त रोगोसे पीड़ित होता हे , पत्नी के साथ और व्यवसाय में खूब परेशानी का सामना करना पड़ता हे , जातक को लकड़ी ,बेड़ी , हथकड़ी ,सूड़ी , से खतरा होता हे , जातक के कार्य पूर्ण नहीं होते , दरेक कार्य में रूकावट आती हे , बिना बुद्धि का , सामर्थय हिन् और उपकार को नहीं माननेवाला , पितरोग से पीड़ित रहता हे , जातक क्रूर और अल्पायु होता हे.

चतुर्थ भाव : चतुर्थ भाव में बैठा मंगल जातक को मित्र और वाहन से दुःख देता हे , विदेश में रहता हे अथवा कही घर से अलग रहता हे , घरमे हमेशा जगडे करता रहता हे , क्रोधी स्वाभाव का होता हे मंगल अगर मकर, मेष , वृश्चिक ,मे हो तो भूमि , वाहन ,तथा दीर्घायु देता हे , परन्तु यही मंगल अगर नीच राशि में चतुर्थ भाव में हो तो माता की मृत्यु जल्दी हो जाती हे , अगर जातक के सभी ग्रह शुभ फलदायक होते हे परन्तु मंगल चतुर्थ भाव में हो तब  माता , भाई , मित्र वगेरे का सुख नहीं मिलता हे , ऐसा जाता बुद्धिहीन , बंधुहीन, खर्चीला होता हे , परन्तु  भूमि का सुख उसे अवशय मिलता हे .

सप्तम भाव : इस भाव में बैठा मंगल वाला जातक शत्रुओ से पीड़ित रहता हे , भागीदारी में भी जगडे होते रहते हे , भागीदारी ठीक से नहीं चलती , स्त्री रोग युक्त होता हे , ऐसे जातक के लग्न में विलम्ब आता हे , लग्न देर से होते हे , शादी टूट जाती हे , या सगाई भी टूट जाती हे ,स्त्री को पुरुष और पुरुष को स्त्री अच्छी नहीं मिलती , लग्न जीवन ज्यादा नहीं टिकता पति पत्नी में कलेश बना रहता हे व्यवसाय में भी लाभ नहीं होता , ऐसा जातक चोरी करनेवाला , व्यभिचारी, और अन्य स्त्रीओ के साथ सम्भोग करने वाला होता हे , शराबी होता हे। अगर ऐसा जाता स्त्री हो तो कई पुरुषो के साथ इनके सम्बन्ध होते हे , और खुद के पति के साथ हमेशा जगडा करती रहती हे ,अगर मंगल पापग्रह के घर में हो तो , स्वगृही हो तो पानी की मृत्यु होती हे , जातक को संतान देर से होती हे , और जातक को उसकी माता के साथ बनती नहीं हे , सातवे स्थान में  स्त्री कुंडली में बैठा मंगल स्त्री  जातक को परपुरुष गामिनी बनाता हे , अर्थात सातवे स्थान में बैठा हुआ मंगल जातक क्रोधी ,नीच लोगो के साथ रहनेवाला गुणहीन होता हे .

अष्ठम भाव : जिस जातक के आठवे भाव में मंगल होता हे , वो मंगल जातक की क्रूर मृत्यु का कारण बनता हे , रोजी, व्यसाय बहुत कठिनाई से मिलता हे , जातक को अपने भाई के कारण कष्ट मिलता हे , उसका खुदका कुटुंब होता हे लेकिन वो सज्जनो की निंदा करता हे ,बुरे काम करने की इच्छा इस जातक के मन में होती हे , अच्छे गुण इस जातक के स्वाभाव् में नहीं होते , अल्पायु होता हे , निर्धन, रोगी ,पीड़ित और निर्दयी होता हे , अर्थात दूसरी तरह से देखे तो जातक को  सोना, चांदी , धन वगेरे प्राप्त होता रहता हे , उसके पैर काले होकर मृत्यु होती हे , अगर जातक का मंगल नीच राशि में हो तो 25 साल की उम्र में पानी में डूबकर मृत्यु होती हे , आँखों से कमजोर , दुर्भाग्यशाली ,रक्तविकार से पीड़ित तथा नीचकर्मो करने वाले होते हे .

बारवा भाव :  जिस जातक के बारवे भाव में मंगल हो तो इंटरकास्ट मेरेज करने वाले होते हे , पराया धन लेने वाले ,चंचल बुद्धि, परस्त्रीगामी ,क्रुर होते हे ,धनहीन, लालची , दुसरो की निंदा का भोग बनने वाले होते हे।  बुरे कार्यो में पैसा खर्च करने वाले होते हे , ऐसे जातक ईश्वर में श्रद्धा नहीं रखते।  कठोर भासी , अधिक शत्रुता वाले , परदेशगमन करनेवाले होते हे .

ऊपर दिए गए सुझाव व्यक्ति की व्यक्तिगत कुंडली पर निर्भर करते हे 

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