राहु का गोचर फल- astrology in hindi
प्रथम भाव : जन्म राशि में राहु गोचरवश जब प्रथम अर्थात जन्म राशि पर भ्रमण करता हे तो मान में वृद्धि होती हे , धन, सम्पन्ति ,बढ़ती हे , संतान तथा पुत्रो के और अपने धन में भी वृद्धि होती हे , पाठक यहाँ ध्यान दे , राहु चंद्र का दुश्मन माना गया हे , अत: चंद्र से शत्रुता होने के कारण मानसिक तनाव भी व्यक्ति को सहना पड़ता हे ,यही नहीं माता का स्वास्थय भी प्रभावित होता हे .
दूसरा भाव : गोचरवश राहु जब जन्म राशि में दूसरे भाव में आता हे तो अकस्मात ढंग से धन हानि और कुटुंब से विरोध कराता हे , विद्या में बाधा , रूकावट ,और हानि होती हे , शत्रुओ में वृद्धि होती हे , और शत्रु परेशान करते हे , आँख में पीड़ा की आशंका रहती हे , व्यय अधिक होता हे ,निर्धनता महसूस होती हे .
तृतीय भाव : राहु गोचरवश जब तृतीय भाव में आता हे तो शरीर निरोग रहता हे , और धन की प्राप्ति होती हे , धन लाभ अचानक होता हे , और भाग्योदय होता हे ,शत्रु परास्त होते हे , और पराक्रम में वृद्धि होती हे , भाइयो से सहायता और लाभ होता हे और सुख समृद्धि होती हे . ( astrology in hindi )
चतुर्थ भाव : जन्म राशि से जब राहु चतुर्थ भाव में संचार करता हे तो राहु कष्ट देता हे , अपने लोग ही पराये हो जाते हे , और परायो जैसा व्यवहार करते हे ,सुख का नाश होता हे और सुख में विशेषकर गृह सुख में कमी आती हे सम्बन्धियों से कोई भी सहायता नहीं मिलती , गृह बदलना पड़ता हे , और यहाँ तक की मकान छुड़वा देता हे , घर से बाहर रहना पड़ता हे , यदि किसी कारणवश मकान का निर्माण प्रारम्भ किया जाए तो अनेक प्रकार का दुःख उठाना पड़ता हे .प्रत्येक भाव से क्या विचार आता हे ? भाव 7 -12
पंचम भाव : जन्म राशि से गोचरवश राहु जब पंचम संचार करता हे , तो धन ऐश्वर्य में अकस्मात् वृद्धि करता हे , लॉटरी , सट्टा , आदि से धन लाभ होता हे , भाग्य में वृद्धि करता हे , परन्तु इसकी यहाँ से चंद्र पर द्रष्टि मानसिक परेशानी देती हे ,अत: मानसिक व्यथा के साथ कई प्रकार के सुख देता हे .
षष्ठ भाव : गोचर वश राहु जन्म राशि में जब छठे भाव में भ्रमण करता हे तो लक्ष्मी और सुख की प्राप्ति होती हे , रोग, शोक, और शत्रुकृत पीड़ा से मिलती हे ,एक मतानुसार यहाँ राहु गोचरवश मान की हानि करवाता हे तथा धन की हानि होती हे , आँखों में कष्ट रहता हे ,और कई व्यंजनों की प्राप्ति होती हे .
सप्तम भाव : जन्म राशि के गोचरवश जब सप्तक भ्रमण करता हे तो व्यक्ति को क्रियाशील बनाता हे , यात्राओ से लाभ और सरकार की और से सहायता , लाभ और ख़ुशी प्राप्त होती हे , व्यापार में अचानक वृद्धि होती हे , मित्रो से सहायता मिलती हे , मन में अशांति और कलह रहती हे , शरीर में पित दोष के कारन और वायुविकार के कारण कष्ट की सम्भावना रहती हे.
अष्ठम भाव : गोचरवश अष्ठम भाव में आया हुआ राहु शुभ - अशुभ दोनों प्रकार के मिश्रित फल प्रदान करता हे , धन लाभ के साथ साथ रोगोत्पत्ति आदि कष्ट भी देता हे , भयंकर रोगो की सम्भावना रहती हे , और विदेश यात्रा की प्रबल संभावना रहती हे , यहाँ राहु फल अकस्मात् देता हे.
नवम भाव : जन्म राशि में गोचरवश राहु जब नवम भाव में संचार करता हे , आशातीत लाभ होता हे , राज्य की और से कृपा प्राप्ति होती हे ,मित्रो से हर्ष तथा सहयोग मिलती हे ,यहाँ से चंद्र पर दृष्टि के कारन मन में कलेश भी रहता हे ,और मानसिक बेचैनी बढ़ जाती हे .
दशम भाव : गोचरवश राहु जब दशम भाव में भ्रमण करता हे तो सामान्य फल मिलता हे , कार्यो में परिश्रम में सफलता मिलती हे , मान में अचानक वृद्धि होती हे ,परन्तु अस्कस्मात शत्रु भी प्रबल होते हे , दान पुण्य को मन चाहता हे , तीर्थो में स्नान की प्राप्ति होती हे. ( hindi jyotish )
एकादश भाव : जब राहु गोचरवश चंद्र राशि अर्थात जन्म राशि से एकादश भाव में भ्रमण करता हे तो शुभ कार्यो में प्रवृति बढ़ती हे , यहाँ राहु सौभाग्य में वृद्धि करता हे , दान पुण्य में रूचि बढ़ती हे , जीवन साथी अस्वस्थ हो सकता हे , मित्रो से हानि होती हे , और पुत्रो को कष्ट होता हे ,एक मतानुसार राहु यहाँ पिता के लिए अत्यंत अशुभ रहता हे , यहाँ राहु अचानक लाभ एवं हानि करता हे .
द्वादश भाव : गोचरवश राहु जब द्वादश भाव आता हे तो अत्यनधिक व्यय के कारण परेशानी होती हे ,भूमि, भवन के सुख में कमी लाता हे , सूख का नाश होता हे ,घर छोड़ना पड सकता हे ,बंधन में पड़ने की सम्भवना रहती हे , आयकर का छपा अचानक पड़ने की सम्भावना रहती हे , माता के स्वास्थय के प्रति चिंता होती हे , चौपायों को कष्ट होता हे .
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