कुंडली में कोनसी राशि को किस अंक से जाना जाता हे
मेष राशि को कुन्डलीमे १ अंक से जाना जाता हे.
वृषभ राशि को कुन्डलीमे २ अंक से जाना जाता हे .
मिथुन राशि को कुन्डलीमे ३ अंक से जाना जाता हे.
कर्क राशि को कुन्डलीमे ४ अंक से जाना जाता हे.
सिंह राशि को कुन्डलीमे ५ अंक से जाना जाता हे.
कन्या राशि को कुन्डलीमे ६ अंक से जाना जाता हे.
तुला राशि को कुन्डलीमे ७ अंक से जाना जाता हे.
वृश्चिक राशि को कुन्डलीमे ८ अंक से जाना जाता हे.
धन राशि को कुन्डलीमे ९ अंक से जाना जाता हे.
मकर राशि को कुन्डलीमे १० अंक से जाना जाता हे.
कुम्भ राशि को कुन्डलीमे ११ अंक से जाना जाता हे.
मीन राशि को कुन्डलीमे १२ अंक से जाना जाता हे.
वृषभ राशि को कुन्डलीमे २ अंक से जाना जाता हे .
मिथुन राशि को कुन्डलीमे ३ अंक से जाना जाता हे.
कर्क राशि को कुन्डलीमे ४ अंक से जाना जाता हे.
सिंह राशि को कुन्डलीमे ५ अंक से जाना जाता हे.
कन्या राशि को कुन्डलीमे ६ अंक से जाना जाता हे.
तुला राशि को कुन्डलीमे ७ अंक से जाना जाता हे.
वृश्चिक राशि को कुन्डलीमे ८ अंक से जाना जाता हे.
धन राशि को कुन्डलीमे ९ अंक से जाना जाता हे.
मकर राशि को कुन्डलीमे १० अंक से जाना जाता हे.
कुम्भ राशि को कुन्डलीमे ११ अंक से जाना जाता हे.
मीन राशि को कुन्डलीमे १२ अंक से जाना जाता हे.
१२ राशि का ३६० अंश होता हे.
१ राशि का ३० अंश होता हे .
१ अंश का ६० कला होती हे .
और १ कला = ६० विक्ला होती हे .
नक्षत्र कुल मिलाके २७ प्रकारके होते हे .
अश्विनी , भरणी , कृतिका , रोहिणी , मृगशीर्ष , आद्रा , पुनर्वसु , पुष्य , आश्लेषा , मघा, पूर्वाफाल्गुनी ,उत्तराफाल्गुनी , हस्त, चित्रा , स्वाति , विशाखा , अनुराधा , जयेष्ठा , मूल ,पूर्वाषाढ़ा , उतरासाढा , घनिष्ठा , सततारिका ,पूर्व भाद्रपद , उतराभाद्रपद , रेवती .
तिथि के बारे में जानकारी ,
सूर्य और चंद्र के बिच में जो अंतर् होता हे उसी को तिथि कहते हे.
१२ अंश का अंतर् बढ़ जाये तो १ तिथि .
२४ अंश का अंतर् बढ़ जाए तो २ तिथि .
३६ अंश का अंतर् बढ़ जाए तो ३ तिथि .
४८ अंश का अंतर् बढ़ जाए तो ४ तिथि .
६० अंश का अंतर् बढ़ जाए तो ५ तिथि .
७२ अंश का अंतर् बढ़ जाए तो ६ तिथि .
८४ अंश का अंतर् बढ़ जाए तो ७ तिथि .
९६ अंश का अंतर् बढ़ जाए तो ८ तिथि .
१०८ अंश का अंतर् बढ़ जाए तो ९ तिथि.
१२० अंश का अंतर् बढ़ जाए तो १० तिथि.
१३२ अंश का अंतर् बढ़ जाए तो ११ तिथि .
१४४ अंश का अंतर् बढ़ जाए तो १२ तिथि .
१५६ अंश का अंतर् बढ़ जाए तो १३ तिथि .
१६८ अंश का अंतर् बढ़ जाए तो १४ तिथि .
१८० अंश का अंतर् बढ़ जाए तो १५ तिथि .
भारतीय तिथि की गणना में ,
पहेली तिथि को एकम ,दूसरी को द्वितीया ,तीसरी को त्रिज, चौथी को चतुर्थी ,पंचमी को पंचमी ,छठी को षष्ठी
सातवीं तिथि को सप्तमी ,आठवीं तिथि को अष्टमी ,नवमी तिथि को नवमी ,दशमी तिथि को दशमी ,ग्यारवी तिथि को एकादशी ,बारवी तिथि को दवादशी ,तेरवी तिथि को त्रयोदशी ,चौदवी तिथि को चतुर्दशी ,पन्द्रवीं तिथि को ( शुकल ) पूनम ,पन्द्रवीं तिथि को (कृष्ण ) में अमास कहते हे।
ग्रहो की दृष्टि :
पूर्ण दृष्टि : जो ग्रह देख रहा हे , वह द्रष्टा कहलाता हे ,तथा जिस पर दृष्टि पड़ती हे , वह दृष्टि पड़ती हे वह दृष्टे कहलाता हे ,जब किसी भाव में कोई गृह सामने के सातवे भाव के ग्रह को देखता हे तो पूर्ण दृष्टि होती हे , यदि कोई ग्रह मेष राशि में होगा तो वह तुला राशि में बैठे ग्रह को देखेगा , यह दृष्टि अत्यंत प्रभावशाली होता हे।
त्रिपाद दृष्टि : मंगल को छोड़कर सब ग्रह अपने स्थान से 4 तथा 8 स्थान को या ग्रह को त्रिपाद दृष्टि से देखा करते हे।
द्विपाद दृष्टि : गुरु को छोड़कर सब ग्रह अपने स्थान या स्थान से 5 तथा 9 स्थान में गृह को द्विपाद दृष्टि से देखता हे।
एकपाद दृष्टि : शनि के अतिरिक्त सभी ग्रह अपने स्थान से 3 तथा 10 स्थान में ग्रह को एकपाद दृष्टि से देखते हे।
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