चंद्र महादशा फल : 1 से 6 भाव तक

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चंद्र महादशा फल :  1  से 6 भाव तक


प्रथम भाव : यदि जन्म कुंडली में चंद्र लग्न अर्थात प्रथम भाव का स्वामी होकर बलवान हो तो अपनी दशा-अन्तर्दशा में मान - सम्मान , धन में वृद्धि करता हे , मन - चित प्रसन्न रहता हे , महिलाओ सहायता और लाभ होता हे , स्वास्थय अच्छा रहता हे , तरल पदार्थो के व्यापार में बहुत लाभ होता हे , यात्रा द्वारा सफलता मिलती हे , यदि चन्द्रमा कमजोर हो तो  शारीरिक कष्ट और रोग देता हे , हानि की आशंका रहती हे और मानसिक परेशानी किसी न किसी तरह बनी रहती हे।

द्वितीय भाव : यदि किसी जन्म कुंडली में चन्द्रमा द्वितीय भाव का स्वामी ग्रह होकर बलवान हो तो अपनी दशा अन्तर्दशा में धन में विशेष वृद्धि करता हे , परिवार में सुख शांति में वृद्धि करता हे , विद्या - विवाह में लाभ होता हे , भाषण शक्ति बढ़ती हे , नौकरी प्राप्त होती हे , यदि चन्द्रमा द्वितीय भाव का स्वामी होकर निर्बल स्तिथि में हो तो अपनी दशा अन्तर्दशा में कुटुम्बियों से अनबन कराता हे , विद्या में बाधा अथवा विद्या रुक भी सकती हे , स्त्री को कष्ट होता हे , कुटुंब में अशांति का वातावरण रहता हे।

तृतीया भाव : यदि चन्द्रमा जन्म कुंडली में तृतीया भाव का स्वामी होकर बलवान एवं शुभ स्तिथि में हो तो अपनी दशा - अंतर्दशा में छोटे भाइयो से सहायता एवं धन लाभ होता हे और छोटे भाइयो के धन और मान - सम्मान में वृद्धि होती हे , अच्छे मित्र मिलते हे और सहायता करते हे , व्यक्ति अपने बाहुबल की खूब परिचय देता हे , सफलता एवं विजय प्राप्त होती हे , लेखन एवं पत्राचार एवं यात्रा द्वारा लाभ होता हे , नौकरी का सुख मिलता हे ,यदि चन्द्रमा तृतीय का स्वामी होकर कमजोर और अशुभ स्तिथि में हो तो अशुभ फल मिलते हे , साहस में कमी आती हे  और परेशानी का साथ रहता हे , यात्रा में कष्ट होता हे , पराजय देखनी पड़ती हे , और माता को कष्ट होता हे।

चतुर्थ भाव : यदि किसी की जन्म कुंडली में चन्द्रमा चतुर्थ  भाव का स्वामी होकर बलवान एवं शुभ स्तिथि तो वह अपनी दशा अन्तर्दशा में शुभ फल देता हे , जद्दी जायदाद का लाभ मिलता हे और माता द्वारा भी धन प्राप्त होता हे , व्यापार , विशेषकर तरल - पदार्थो के व्यापार से लाभ होता हे ,व्यक्ति उन्नति की और अग्रसर रहता हे , उल्लास ,उत्साह , और प्रसन्ता का वातावरण रहता हे , जनता से लाभ एवं सहयोग प्राप्त होता हे , यदि चन्द्रमा अशुभ स्तिथि एवं कमजोर  होगा तो विद्या में रूकावट , उदासीनता होती हे ,  व्यापार द्वारा लाभ में कमी आती हे , स्वाभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता हे , और जायदाद का विवाद हो सकता हे।

पचम भाव : यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा पंचम भाव का स्वामी होकर शुभ स्तिथि  में और बलवान हो तो वह अपनी दशा अंतर्दशा में भाग्योदय अवशय करता हे , जातक को प्रवर बुद्धि की प्राप्ति होती हे , सट्टे आदि से लाभ होता हे , पुत्र प्राप्त होता हे , और धन में वृद्धि होती हे , यदि चन्द्रमा कमजोर होगा तो कन्या संतान की प्राप्ति होती हे ,और सख्त मेहनत करने पर भी लाभ नहीं होता , संतान की चिंता रहती हे।

षष्ठ भाव :  यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा छठे भाव का स्वामी होकर शुभ स्तिथि एवं बलवान हो तो वह अपनी दशा अन्तर्दशा में शुभ फल देता हे , धन के माध्यम से सुख मिलता हे , स्वास्थय अच्छा रहता हे , और शत्रुओ की संख्या कम होती हे , संघर्ष करने से लाभ एवं सफलता मिलती हे यदि चन्द्रमा कमजोर हो तो इस अवधि में सेहत में गड़बड़ करेगा , शत्रु भी तंग करते हे , पुत्र के धन का नाश होगा, माता को यात्रा में कष्ट होता हे।  

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