ग्रहो का दान , दिशाए , और राशि और दिशा

                               चित्र:Gas giants in the solar system.jpg - विकिपीडिया          

अब हम जानेंगे के अगर कोई ग्रह किसी कुंडली में अशुभ हे तो हम उस ग्रह की शांति के लिए कोनसा दान करेंगे.
सूर्य : माणिकय , ताम्बा , लाल चन्दन , लाल वस्त्र , घेहु , गुड , लाल कमल ,गाय .
चंद्र : मोती ,चांदी , कपूर ,सफेदवस्त्र , जल , पूर्णघंट ,गाय ,शंख .
मंगल : लालरंगके कपडे ,सोना , लालरंगका बेल ,मसूर ,ताम्बा , घेहु ,.
बुध : पन्ना ,हरा कपडा ,मूंगा ,हाथीदांत .
गुरु : पोखराज , पीलेवस्त्र ,हल्दी ,पिले अन्न , नमक, घोडा .
शुक्र : हिरा ,रंगबेरगी वस्त्र, चावल ,गाय, सुगंधित वस्त्र ,सफ़ेद रंग का घोडा ,.
शनि : नीलम ,लोखंड ,काले तल, कृष्णवस्त्र, काले रंगकी गाय ,काले उड़द , नील रंगका कम्बल .
राहु : गोमेद ,कृष्णवस्त्र ,कम्बल ,तलवार ,तिल का तेल ,.
केतु : कस्तूरी,कम्बल ,तिलका तेल ,शस्त्र तथा बकरा .

अब हम जानेगे की कोनसे ग्रह के लिए कोनसी दिशा के लिए अनुकूल हे
दिशा और ग्रह;-
पूर्व                        : सूर्य ,गुरु , शुक्र ,
पश्चिम                 : चंद्र ,शनि ,
उतर                     : बुध ,केतु
दक्षिण                  : मंगल, शुक्र, राहु  .
दिशाए और राशिआ  मतलब कोनसी राशि वाले लोगो को किस दिशा में काम करना चाहिए जिससे सफलता मिले .
पूर्व                   :मेष , सिंह , धन ,
पश्चिम             :मिथुन, तुला ,कुम्भ,
उतर                 :कर्क, वृषभ, ,मीन,
दक्षिण              :वृषभ , कन्या , मकर,

सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा के कारण राशि चक्र का निर्माण होता है। जबकि पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने के कारण कीमतें बनती हैं। पृथ्वी अपनी धरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। इस प्रकार पृथ्वी का दर्शक पूर्व में आकाश में उठते हुए तारों को देखता है और पश्चिम में स्थापित होता है। जन्म के समय, एक राशि चक्र एक उत्साहपूर्वक दिशा में बढ़ रहा होगा। जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर उठने वाली राशि का जन्म चिन्ह कहलाता है। इस राशि का अंक जातक की कुंडली में सबसे ऊपर चतुष्कोण में दिखाया गया है। इसे जन्म या पहला भाव कहा जाता है। कुंडली में कीमत बाईं ओर से घड़ी की दिशा में गणना की जाती है। प्रथम भाव चतुर्भुज के बाईं ओर का त्रिकोण कुंडली का दूसरा भाव बन जाता है। जहां जातक के जन्म के बाद उठने वाली राशि का नंबर दिखाया जाएगा। इस तरह, 12 राशियों से कुंडलिनी के 12 राशियों का निर्माण होता है, जो एक के बाद एक उठती हैं। कीमतों को स्थान या भुवन के रूप में भी जाना जाता है।

जन्मकुंडली में भाव निश्चित होने से उनको कोई कायमी स्थानदर्शक अंक मिलता नहीं हे , जन्मकुंडली में बैठे हुए अंक राशि का सूचन करते हे , जन्मलग्न राशि का अंक हमेशां प्रथम स्थान में दर्शाया जाता हे , जैसे की जहा पर 1 लिखा तो तो मेष लग्न , 2 लिखा हो तो वृषभ लग्न इत्यादि ,सूर्य चंद्र आदि ग्रह आकाशमे जिस राशि में हो वही राशि अंक लिखा जाता हे 


जन्मकुंडली का निरिक्षण करेंगे तो प्रथम भाव वो जातक के जन्म समय पर आकाशमे पूर्व दिशा की स्तिथि दर्शाते हे , उसके बराबर विरुद्ध दिशा यानी सप्तम भाव पश्चिम दिशा की स्तिथि दर्शाते हे , दसम स्थान वो मस्तक ऊपर का आकाश और दक्षिण दिशा का सूचक कहलाता हे , जबकि  चतुर्थ स्थान पैर के निचे रहता हे , और उतर दिशा का सूचन करता हे।

जन्म के समय के बारे में जानने से जन्मकुंडली में सूर्य की स्थिति का अनुमान मौखिक गणना से लगाया जा सकता है। सूर्य चिह्न से गणना करके भी जन्मों का अनुमान लगाया जा सकता है। जैसे यदि जन्म के समय सूर्य मेष राशि में हो और सूर्योदय के समय जन्म हुआ हो तो जातक का मेष लग्न होगा। यदि बच्चा सूर्योदय के दो घंटे बाद पैदा होता है, तो सूरज 12 वे भाव में होगा और जन्मलग्न वृषभ होगा। इस तरह अन्य ग्रहों को भी उनकी राशि में व्यवस्थित किया जा सकता है और मौखिक गणना द्वारा पूर्ण कुंडली बनाई जा सकती है। हालांकि यह एक बहुत ही सरल विधि है लेकिन इस तरह से गणना करने का अभ्यास करना आवश्यक है। ताकि फलादेश में कौशल हासिल किया जा सके।

राशि चक्र की प्रत्येक राशि के स्वामी उस भाव के स्वामी कहलाते हैं। जैसे यदि मिथुन पहले स्थान पर है, तो पहले स्थान को स्वामी बुद्ध कहा जाएगा। दूसरे स्थान पर आने वाले कर्क राशि के साथ, स्वामी चंद्र दूसरे स्थान पर होंगे। इस तरह कुंडलिनी के बारह भावों के स्वामी / अधिपति  / मालिक का निर्णय किया जाएगा। इसके अलावा, हर कुंडली में इसके कारक ग्रह होते हैं।

जन्मकुंडली के बार भाव जातक के जीवन में आने वाले अलग अलग अनुभवों और क्षेत्रो का प्रतिनिधित्व करते हे , प्रथम भाव वो जीवन की शरुआत का सूचक हे , जीवनरूपी बीज का अंकुरण करता हे , बारवा भाव अंत का सूचक हे , विसर्जन यानी मोक्ष दर्शाता हे , जहा से आये थे वह परत जाने का सूचक हे , ऐसे कुंडली के बार भाव समग्र जीवनचक्र को दर्शाते हे। 



जन्मकुंडली के बार भावो के नाम इस तरह हे।  1 तनुस्थान , 2 धनस्थान , 3 भातृस्थान , 4 मातृस्थान  और सुखस्थान , 5 पुत्रस्थान , 6 शत्रुस्थान , 7  कलत्रस्थान , 8  आयुस्थान अथवा मृत्यु स्थान , 9 भाग्य स्थान और धर्मस्थान , 10 कर्मस्थान , 11 लाभस्थान , 12 व्यवस्थान   







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